जयपुर में घरों से कचरा एकत्र करने के लिए हूपर के साथ चलने वाले कई सहायक (हेल्पर) अपना मूल काम छोड़कर ठेकेदार के लिए दोहरी कमाई में लगा दिए गए हैं। निगम ने प्रत्येक हूपर के साथ एक सहायक तैनात करने का नियम बना रखा है। उनका काम घरों के बाहर रखा कचरा उठाकर गाड़ी में डालना होता है। लेकिन कई हूपर के साथ आने वाले ये सहायक कचरा उठाने के बजाय गाड़ी पर बैठकर कचरे को अलग-अलग करने में जुटे रहते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि आज तक हैरिटेज और ग्रेटर निगम के अधिकारियों ने ऐसे ठेकेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की है।

व्यवस्था के नाम पर सालाना करोड़ों खर्च, फिर भी परेशानी

निगम की चुप्पी का खमियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है। सहायक के गाड़ी पर बैठे होने के कारण लोग खुद ही हूपर में कचरा डालते हैं। हूपर के ऊपर बैठकर सहायक कचरा बीनता है। इससे उसकी दोहरी कमाई हो जाती है। दोनों शहरी सरकारें सहायक के लिए प्रति माह 9 से 11 हजार रुपए का भुगतान करती हैं। इस पर हर माह 60 लाख और सालाना करीब 7.20 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।

ये अपना काम करें तो …

●लोग सड़क पर कचरा फेंकने नहीं जाएंगे, अस्थायी कचरा डिपो खत्म होंगे।
●लोग घर के बाहर कचरा रख दें, निर्धारित समय से देरी पर भी हूपर आएगा तो भी कचरा ले जा सकेगा।

निगम सख्ती दिखाए

हूपर तो पिछले तीन वर्ष से नियमित रूप से आ रहे हैं, लेकिन सहायक की दिक्कत है। कचरा उठाने की बजाय ये कचरा बीनने का काम करते हैं। निगम सख्ती दिखाए तो व्यवस्था में सुधार हो सकता है।
-विक्रम सिंह, मुरलीपुरा

जुर्माना वसूलेंगे

कचरा संग्रहण करने वाली कपनियों के साथ जल्द बैठक की जाएगी। जो नियम और शर्तों में है, उसकी पालना करवाई जाएगी। अनुबंध के मुताबिक फर्म काम नहीं करेंगी तो जुर्माना भी वसूला जाएगा।
-निधि पटेल, आयुक्त, हैरिटेज निगम

पाबंद करेंगे

कचरा संग्रहण व्यवस्था प्रभावी तरीके से लागू करवाया जाएगा। जो संवेदक हैं, उनको पाबंद करेंगे कि नियमों के तहत काम करें। अब तक के कामकाज का रिव्यू भी किया जाएगा और जो जिमेदार हैं, उन पर कार्रवाई भी करेंगे।
-गौरव सैनी, आयुक्त, ग्रेटर निगम

शिकायत का विकल्प नहीं

ज्यादातर लोगों को सहायक के काम की जानकारी नहीं है। सहायक संबंधी शिकायत करने का प्रावधान भी नहीं है। जो शीट जारी की जाती है, उसमें डोर-टू-डोर का ही विकल्प होता है। हैरानी की बात यह है कि पिछले छह वर्ष से सहायक काम कर रहे हैं, लेकिन इनके कामकाज की समीक्षा ही नहीं की गई। निगम अब तक करोड़ों रुपए का भुगतान कर चुका है, लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं हुआ।